Hindi poetry Fundamentals Explained

वीर सुतों के वर शीशों का हाथों में लेकर प्याला,

गौरव भूला, आया कर में जब से मिट्टी का प्याला,

नशा न भाया, ढाला हमने ले लेकर मधु का प्याला,

देख रहा हूँ अपने आगे कब से माणिक-सी हाला,

देखो प्याला अब छूते ही होंठ जला देनेवाला,

कोई भी हो शेख नमाज़ी या पंडित जपता माला,

एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।।३।

नहीं मुझे मालूम कहाँ तक यह मुझको ले जाएगी,

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पी लेने पर तो उसके मुह पर पड़ जाएगा ताला,

किसी ओर मैं आँखें फेरूँ, दिखलाई देती हाला

भग्न हुआ जाता दिन प्रतिदन सुभगे मेरा तन प्याला,

लालायित अधरों से जिसने, हाय, नहीं चूमी check here हाला,

जलने से भयभीत न जो हो, आए मेरी मधुशाला।।१५।

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